by हरिप्रसाद अवधिय&
विनाश से सृजन की ओर-मुख मोड़ और चल,
धूर्त-पथ त्याग कर,मानव मन बन निश्छल।
विनाशिनी संहारिणी शक्ति-तेरी ही कृति का प्रतिफल,
मोड़ दे अपनी दिशा,उत्फुल्ल कर शतदल कमल,
कृत्रिम से प्रकृति उत्तमशान्त सुन्दर धवल,
तो फिर ओ अशान्त मन,चल वापस, प्रकृति ओर वापस चल।
Article Source: http://kriti.agoodplace4all.com
1 टिप्पणियाँ:
स्वागत है, नियमित लेखन के लिये शुभकामनाऐं.
By: Udan Tashtari on 10 मई 2008 को 11:50 am बजे
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