लेखक: जी.के. अवधिया
मनुष्य आरम्भ से ही जिज्ञासु प्रवृति का रहा है। नवीनतम दर्शनीय स्थानों की खोज, मनोहर दृश्यों का अवलोकन, नयनाभिराम प्राकृतिक सौन्दर्य का भरपूर रसपान एवं विभिन्न प्रदेशों के निवासियों से मिलना सदा से ही उसे रोमांचित करता रहा है। इसी रोमांच को प्राप्त करने की अभिलाषा मानव को यात्रा तथा पर्यटन की ओर आकर्षित होने के लिये अत्यन्त प्राचीन काल से बाध्य करती रही है।
पर्यटन के प्रति भारत में युगों-युगों से उन्माद छाया रहा है। इसी लिये "तीर्थ-यात्रा" का प्रावधान बना। वाल्मीकि रामायण में के अनुसार 'श्रवण' के पिता 'शान्तनु' तथा उनकी माता दोनों ही नेत्रहीन थे। इसलिये "तीर्थयात्रा" के लिये 'श्रवण' उन्हें काँवर में बिठा कर ले गये थे। देवर्षि नारद की तीनों लोकों की यात्रा के विषय में भला कौन नहीं जानता? प्रतीत होता है कि केवल तीर्थयात्रा को महत्वपूर्ण बनाने के लिये ही 'चार धामों' की स्थापना की गई थी। अपनी विदुषी पत्नी 'रत्नावली' से तिरस्कृत होने के बाद तथा 'रामचरितमानस' की रचना करने के पूर्व संत श्री 'तुलसीदास' जी ने भी चारों धामों तथा अनेक तीर्थों की यात्रा की थी।
विदेशी भी यात्रा के लिये कम आकर्षित नहीं रहे हैं। ने ईसा पूर्व पाँचवीं शताब्दी में ग्रीस के 'हेरोडोटस' अनेक यात्रायें की थीं। चीनी यात्री 'ह्वेन सांग' सातवीं शताब्दी में भारत यात्रा किया था। इतिहास साक्षी है कि क्रिस्टोफर कोलम्बस, मार्को पोलो, ओड़ीसियस, वास्को डी गामा, मैगेलान, प्रेज़ेवाल्स्की, अवानासे निकितिन, तुर हीरडाल, जैक कास्तु आदि अनेक विदेशियों ने देश-विदेश की अनेक लम्बी यात्रायें की हैं।
वैसे तो यात्रा के प्रति प्रत्येक उम्र के व्यक्तियों को लगाव होता है, किन्तु बच्चे यात्रा के लिये सर्वाधिक आतुर रहते हैं। छुट्टियों में बाहर जाने के लिये वे इतने उत्तेजित रहते हैं कि महीनों पहले से वे योजना बनाने लगते हैं तथा भावी यात्रा की तैयारी में जुट जाते हैं।
लोग किन कारणों से यात्रा करने के लिये प्रेरित होते हैं?
रोजमर्रा की उबाने वाली जिन्दगी में परिवर्तन लाकर पुनः नई स्फूर्ति पाने के लिये
पर्वतों, नदियों, सागरों, वनों आदि के प्राकृतिक सौन्दर्य का रसपान करने के लिये
पवित्र तीर्थ स्थानों के दर्शन करने के लिये
जी.के. अवधिया हिन्दी के प्रति समर्पित लेखक हैं। लेखक का वेबसाइट - हिन्दी वेबसाइट
Article Source: http://kriti.agoodplace4all.com
रविवार, 13 अप्रैल 2008
हम यात्रा क्यों करते हैं
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1 टिप्पणियाँ:
हा हा हा.. चलिये हम तो टिपिया ही देते हैं.. :)
By: PD on 6 मई 2008 को 10:31 pm बजे
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